जो काशी अग्रवाल समाज द्वारा संचालित जो अग्रसेन महाजनी इन्टर कालेज एवं बाल पाठशाला की नींव 14 जून 1896 में ही रख दी गई थी।
जिस समय समाज का प्रारम्भ हुआ उस समय व्यापारिक शिक्षा के लिये बालकों को पहिले गुरू के यहाँ पहाड़ा सीखना पड़ता था और कुछ बड़े होने पर कोठियो में शागिर्दी (शिष्यत्व) करनी पड़ती थी। पहले बैंकों की प्रथा अधिक न थी और बैंकों का काम महाजनी कोठियों द्वारा होता था। कोठियों के मुनीब ही विद्यार्थियों को व्यापार की शिक्षा देते थे। हर कोठी में प्रायः इसका प्रबन्ध रहता था। इसी के अनुसार स्व0 बा0 गोविन्ददास जी के पिता बा0 माधोदास जी की कोठी में भी कुछ विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने जाते थे। वहाँ के मुनीम बा0 गणेशदास जी इन बालकों को शिक्षा देते थे। धीरे-धीरे बालकों की संख्या बढ़ जाने के कारण एक मुनीब और बढ़ाये गये और विद्यार्थियों को एक अलग दालान में पढ़ाने का प्रबन्ध हुआ। इसी समय अग्रवाल समाज में यह विचार उठा कि यदि इन्हीं बालकों को लेकर एक पाठशाला खोल दी जाय तो जाति के बालकों को सुशिक्षित तथा व्यवसायी बनाने में सुविधा हो। अतः ज्येष्ठ शु0 4 रविवार सं0 1983 (14 जून 1896) के शुभ मुहूर्त में बा0 माधोदासजी साह के घर पर ’श्री अग्रवाल महाजनी पाठशाला’ के नाम से इस पाठशाला की स्थापना हुई। स्वयं बा0 माधोदास जी ने उपस्थित होकर गणेशजी का पूजन करवाया और बा0 रघुनाथदास जी नारेवाले इसके प्रथम मंत्री बनाये गये।
कालान्तर में दिनांक 13 दिसम्बर 1908 में यह पाठशाला श्री हरिवचन्द्र पेशवा बाग में लगे। यह स्थान ट्रस्टियों द्वारा समाज को मिल गया। यही से पाठशाला ने अपना स्थायित्व पाया। अठाइसवें वर्ष में पूरी पाठशाला सातो चौक में आ गई तब से यही लग रही है। आज की तिथि में चौखम्भा श्री अग्रसेन महाजनी इन्टर कालेज एवं बाल पाठशाला के नाम से विख्यात है। समाज एवं अन्य काशी के नागरिकों ने अपने बच्चों को यहाँ पठाया है और वे बच्चे आज विश्व में ख्याति एवं नाम कमा रहे है।
बालकों की शिक्षा का आरम्भ माता से ही होता है इसी कारण हर देश की माताओं की शिक्षा देश के उत्थान में बहुत ही सहायक होती है। प्राचीन काल में भारत की महिलाएँ कितनी विदुषी होती थीं। परन्तु ज्यो ज्यो हमने अपनी महिलाओं का अनादर प्रारम्भ किया, उनका शिक्षा की ओर ध्यान कम होता गया और देश पतन की ओर झुकता गया। ब्रिटिश शासन के शान्तिमय वातावरण में पुनः स्त्री शिक्षा की ओर यहाँ के विद्वानों का ध्यान गया और स्थान-स्थान पर पाठशालाएँ खुलीं।
समाज सदा से ही स्त्री-शिक्षा की आवश्यकता का अनुभव करता आया है। प्रारम्भ में सह शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए बालपाठशाला में कन्याओं को भी भरती करने की अनुमति दी गयी पर अभी वह समय नहीं आया था कि कन्याओं के माता-पिता अपनी कन्याओं को लडको के स्कूल में पढ़ने देते इससे इस कार्य में विशेष सफलता न मिल सकी।
सन् 1918 में कतिपय अग्रवाल भाइयों ने मिलकर अलग ही एक कन्या पाठशाला स्थापित की। यह पाठशाला निःशुल्क थी और केवल अग्रवाल कन्याये ही पढ़ सकती थीं। राय बहादुर बा0 वैद्यानाथदास जी तथा उनके आत्मज बा0 सत्यनारायण प्रसाद ने इसमें विशेष प्रयत्न किया। नवम्बर 1922 में कन्या पाठशाला समाज के अन्तर्गत हो गयी। उस समय इसमें 60 बालिकायें थीं और श्रीमती जयन्ती देवी प्रधानाध्यापिका थी। समाज के कन्या पाठशाला का द्वार सभी जाति के लिए खोल दिया।
वर्तमान में यह पाठशाला श्री अग्रसेन कन्या इन्टर कालेज एवं कन्या पाठशाला के नाम से गोलधर मैदागिन स्थित एवं बड़े परिसर में स्थापित है एवं नित्य नई ऊंचाईयों को छू रहा है। वर्तमान में इसमें कला, विज्ञान एवं वाणिज्य विषयों की पढ़ाई होती है। इसके अतिरिक्त परिसर में एक पुस्तकालय भी स्थापित है एवं एक बड़ा कम्प्यूटर कक्ष भी स्थापित हुआ है।
श्री अग्रसेन शिशु विहार की स्थापना नन्ने-मुन्ने बच्चों को आधुनिक शिक्षा देने के हिसाब से किया गया था। शिशु विहार प्रारम्भ में सोराकुआ स्थित मकान में संचालित होता रहा कालान्तर में इसे 1935 में बाल पाठशाला परिसर में लगने लगी परन्तु इसे पुनः सोराकुआं स्थित भवन में स्थानान्तरित कर दिया गया एवं आज भी उसी प्रकार से भव्य रूप में संचालित हो रहा है। शिशु विहार का संचालन की काशी अग्रवाल समाज के एक ईकाई के रूप में संचालित किया जा रहा है।
आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व समाज के मानिन्दों ने यह महसूस किया कि लड़कियों की उच्च शिक्षा के लिये भी कुछ करना चाहिए एवं सतत् प्रयास एंव आपसी सहयोग से ही अग्रसेन कन्या पी0जी0 कालेज की स्थापना की गई। इसका प्रारम्भ शहर स्थित बुलानाला परिसर में स्थापित हुआ। इस कालेज में कला, विज्ञान की पढ़ाई प्रारम्भ हुई। कालान्तर में इसमें उतरोत्तर प्रगति होती रही। वाणिज्य संकाय भी स्थापित किया गया। आगे चलकर इसे स्नातक से आगे बढ़कर पोस्ट ग्रेजुएड की कक्षाएं भी प्रारम्भ हुई। छात्राओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए परमानन्दपुर परिसर में भूमि क्रयकर कालेज का विस्तार किया गया। आज यह कालेज पूर्वांचल में छात्राओं के पढ़ने हेतु एक मील का पत्थर साबित हो रहा है।
समाज सेवा विभाग के अन्तर्गत अग्रवाल वन्धुओं एवं समाज कि महिलाओं के साथ ही साथ जनमानस के लिये अनेक कार्यक्रम वर्ष भर चलाये जाते हैं जिसमें होली मिलन,दीपावली मिलन, तीजोत्सव, वार्षिक प्रशिक्षण शिविर, कोवड़िया सेवा सहित अनेकों कार्यक्रम कराये जाते है जिसमें समाज के पुरूष एवं महिलाओं का भरपूर योगदान किसी न किसी एक में रहता है।
भण्डार विभाग की स्थापना काफी पहले से हो चुकी थी इसमें नगर में होने वाले शादी व्याह या अन्य आयोजनों पर वर्तन जरूरतमंदों को इस्तेमाल करने हेतु प्रदान किया जाता है। भण्डार विभाग की महत्ता इतनी ज्यादा रहतीहै कि यहाँ रखे वरतन के भण्डार कम पड़ जाते है। भण्डार विभाग में मुख्य रूप से कड़ाहा, भगोने, परात चाची छड थाली ग्लास चम्मच भोजन परोसने का वर्तन इत्यादि प्रमुख रूप से मौजूद रहते है।
निम्नलिखित सेवा कार्य भी समाज द्वारा समय-समय पर किये जाते है इनका उल्लेख करना अति आवश्यक है-
1.समाज के निरात्रित विधवाओं को मासिक अर्थ एवं मेडिकल सहायता प्रदान करना।
2.समाज द्वारा संचालित चिकित्सा सहायता केन्द्र जिसमें डॉक्टर की सलाह एवं उचित दवा उपलब्ध कराना।
3.श्री अग्रसेन जयन्ती का भव्य आयेाजन करना।
4.शहर के अन्य धार्मिक कार्यों में शामिल होना एवं उचित सहायता प्रदान करना।
5.वार्षिक होली मिलन समारोह का भव्य आयोजन इत्यादि